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छत्तीसगढ़ी व्याकरण काल के भाग अउ उदाहरण

*छत्तीसगढ़ी व्याकरण* *आज के पाठ* *काल* (समय) काल या समय के 3 प्रकार होथे। वर्तमान काल - आज/अभी जेन समय चलत हे। भूत काल - आज के पहिली जेन समय बीत चुके हे। भविष्य काल - आज के बाद जेन समय आही। ये तीनों काल ला चार प्रकार मा बाँटे गेहे। सामान्य काल अपूर्ण काल पूर्ण काल पूर्ण अपूर्ण काल सामान्य काल अनिश्चित होथे। बस अतके पता चलथे कि कुछु काम होथे। अपूर्ण काल मा कोनो काम चलत हे, के बोध होथे। पूर्ण काल मा ये पता चलथे पूर्ण अपूर्ण काल मा ये पता चलथे कि कतका समय ले कोनो काम चलत हे, फेर ये पता नइ चलै कि जउन काम चलत हे वो अउ कतका समय तक चलही। अब तीनों किसम के काल के चारों प्रकार ला उदाहरण पढ़ के समझव। *सामान्य (अनिश्चित) वर्तमान काल* (उत्तम पुरुष/ एक वचन) मँय जाथँव। मँय खाथँव। (उत्तम पुरुष/ बहुवचन) हमन जाथन। हमन खाथन। (मध्यम पुरूष/ एक वचन) तँय जाथस। तँय खाथस। (मध्यम पुरुष/ बहुवचन) तुमन जाथव। तुमन खाथव। (अन्य पुरुष/ एक वचन) वो जाथे। वो खाथे। राम जाथे। राम खाथे। सीता जाथे। सीता खाथे। (अन्य पुरुष/ बहुवचन) वोमन जाथें। वोमन खाथें। *अपूर्ण वर्तमान काल* (उत्तम पुरुष/ एक वचन

कविता लिखे के पहिली यहु ला गुनव

कविता लिखे के पहली 1,का कवि *खुद ल सम्बोधित करत हे*, यदि हाँ, त- * मैं,मोर,मोला,मैहर(एकवचन म)अउ हमर,(बहुवचन म),हो सकत हे। *तीनो काल,*उत्तम पुरुष*(स्वयं उत्तम पुरुष बर होथे) म,मैं देखत हौं/मैं देख डरेंव या देखेंव/मैं देखहूँ। अइसने बहुवचन बनही 2,यदि कोई *सेकंड पर्सन* ल सम्बोधित करत हन त- *तँय,तोर,तोला,तँयहर (एकवचन म) तुमन,तुम्हर,(बहुवचन में) * तीनो काल *मध्यम पुरुष*(स्वयं के अलावा कोई सेकंड पर्सन मध्यम पुरूष होही) तँय देखत हस/तँय देखेस/तँय देखबे(एकवचन) तुमन देखत हव/तुमन देख डरेव/तुमन देखहू(बहुवचन) 3,यदि रचना म कवि स्वयं अउ सेंकड पर्सन के अलावा कोनो *तीसर पर्सन* के बारे म बात करत हे या वोला सम्बोधित करत हे, त- वो,वोहर,ओखर,ओमन,उनला,हो सकत हे, तब पुरुष *अन्य पुरुष*रही। तीनो काल(अन्य पुरुष म) ओहर देखत हे/ओहर देखिस/ओहर देखही(एकवचन) ओमन देखत हे/ओमन देखिस/ओमन देखही(बहुवचन) *एखर आलावा होथे लिंग,जेमा हमर भाखा म कुछ छूट हे, तभो उचित प्रयोग जरूरी रही,जइसे- बेलबेलहा टूटा, बेलबेलही टूरी* *रचना लिखत बेरा कर्ता, कर्म अउ कारक चिन्ह के घलो उचित प्रयोग जरूरी हे, कर्ता कोन हे(काखर उप्पर बात

छोड़ संसो हे जीना (कुण्डलियाँ छंद)

छोड़ संसो हे जीना (कुण्डलियाँ छंद) जीना सीखव आज मा , छोड़ काल के बात । आहय जिनगी मा मजा , कटय बने दिन रात ।। कटय बने दिन रात ,  गोठ ला जी तँय सुनले । बात हवय ये  सार  ,  मने मा  थोरिक  गुनले ।। जिनगी मा जी रोज , इहाँ सुख दुख हे पीना । कहिथे सुनव सियान ,  छोड़ संसो हे जीना ।।          मयारू मोहन कुमार निषाद            गाँव - लमती , भाटापारा ,       जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

तोर सुरता मा छत्तीसगढ़ी गजल

तोर सुरता मा नींद बैरी आवय नही । का करव मैं कुछू मोला भावय नही ।। तोर  चेहरा मोर  आंखी मा झुलत रहिथे । अन्न पानी मोला काही अब सुहावय नही ।। रात - दिन तोर सपना अब सताथे मोला । का बतावव तोर सुरता हर जावय नही ।। मन हा बइहा असन मोर गुनत रहिथे । तोर छोड़ गीत काही अब गावय नही ।। मया मा मन ला मोर कइसे मोही डारे । बोली कखरो अब मोला सहावय नही ।।         ©||मयारू मोहन कुमार निषाद||®

छन्न पकैया छंद

छन्न पकैया छंद : - कइसन आय जमाना  ................... छन्न पकैया छन्न पकैया , कइसन आय जमाना । फइले फैशन चारो कोती , कहिबे का का बताना ।। छन्न पकैया छन्न पकैया , लाज शरम हर मरगे । नान नान कपड़ा मा संगी , फूहड़ता हर भरगे ।। छन्न पकैया छन्न पकैया , फैशन हावय भारी । ददा दाई बरजय नही गा , कइसन हे लाचारी ।। छन्न पकैया छन्न पकैया , कतका बात ल धरबे । घर मा लइका छूट पाय ता , बता तही का करबे ।। छन्न पकैया  छन्न पकैया , कटे - फटे  हे  कपड़ा । अंग अंग जी झलकत हावय , देखव माते लफड़ा ।। छन्न पकैया छन्न पकैया , कोनो नइ शरमाये । नोनी बाबू एक बरोबर , फैशन हवय लगाये ।। छन्न पकैया   छन्न पकैया ,  घटना  रोजे बाढ़े । काला दोष लगाबे संगी , देखय सब झन ठाढ़े ।। छन्न पकैया  छन्न पकैया , कोन हवय जी दोषी । पहिली गुनले बात ला सबो , झन कर ताता रोषी ।। छन्न पकैया  छन्न पकैया ,  कइसन  ये  पहिनावा । छोड़व अइसन फैशन ला जी , बने सादगी लावा ।। छन्न  पकैया  छन्न  पकैया  ,  हमर ये  जुमेदारी ।। लइका मनला सुग्घर राखव , जम्मो नर अउ नारी ।।              मयारू मोहन कुमार निषाद

हिंदी कुंडलिया

थोड़ा कड़वा मगर वर्तमान का दर्पण है ....................... पढ़ता रचना ओ सखे , जो दे उचित विचार । बाकी रचना देख बस , देते लाइक मार ।। देते लाइक मार , कहा है रचना पढ़ते । समझे ना कुछ बात , तभी आगे है बढ़ते ।। काश समझते यार , नया तब राहे गढ़ता । होता ना सब पाप , कोइ जब रचना पढ़ता ।। आये इस संसार में , करले अच्छे काम । दो दिन की है जिंदगी , जपलो हरि का नाम । जपलो हरि का नाम , पार भव से जाओगे । प्रभु नाम है सार , चरण में सुख पाओगे । कल की चिंता छोड़ , आज ही हरिगुण गाये । रखे सभी का मान , मजा जीने में आये ।।                                   मयारू मोहन कुमार निषाद                            गाँव - लमती , भाटापारा ,                         जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

हिन्दी रोला छंद

रिश्तों की पावन डोर (रोला छंद ) .............. करो नही अभिमान , यहा सब मिटटी भाई । जर जमीन के नाम , करो ना कभी लड़ाई । आपस में मतभेद , सदा घातक है हुआ । जीवन के दिन चार , नही है कोई जुआ ।। रिश्ते है अनमोल , कद्र जी इनकी करलो । ना समझो कमजोर , बात हृदय में धरलो । मानो सबको एक , तभी तो मान मिलेगा । सुखमय हो परिवार , चेहरा सदा खिलेगा ।।            ||मयारू मोहन कुमार निषाद||