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Showing posts from August, 2017

नही रही अब पहले जैसी , मौसम में ओ बात | तन्हा सा महसूस है होता , हुई बिरानी रात || पहले तो थी जीवन में , नगमे और बरसाते | उजड़ गये है आज सभी , कर के हमे बेगाने || ||मयारू मोहन कुमार निषाद||

ढूढ़ता हु इन राहो में , मंजिले कोई नई ! हो ना जाउ खुद से जुदा , खो ना जाउ मै कहि !! मुझको इतना बतला दे , तू यै मेरे ह्मनशि ! चाहता है ये दिल तुझको , फूल जैसे महकशि !! भौरा बनकर झूमे ये मन , घुमे हरपल तेरी गली ! धड़कन में नाम तेरा है , हर साँसों में लहर चली !! है वार दू ये जिंदगी , तुझपे यै जा निशार करू ! तुही इस दिल की पूजा है , तुझसे मैं कितना प्यार करू !! दिल में बसी है तू ही तू , हर सांस में नाम तेरा आये ! तेरी यादो का है पहरा , हरपल मेरे मनको भाये !! !!मयारू मोहन कुमार निषाद!!

बहुत हुआ अब राजनीति का , गंदा खेल को बन्द करो | नमक यहा की खाकर , आज नमक हरामी ना करो || हाफिज और अफजल की भाँति , हाल तुम्हारा भी होगा | मरोगे तुम कसाब की मौत , हजम नही पानी होगा || भूल गये तुम भारत की , मर्यादा और बड़प्पन को | जिसने इतना है मान दिया , माँ की गौरव सनातन को || जाती धर्म का बोल आज , किसके दम पर है बोल गया आस्तीन में बैठा साँप आज , सारे भेद है खोल गया || वन्दे मातरम् ||मयारू मोहन कुमार निषाद||

दिया कखरो बुतागे , कुल के | कखरो घर अंधियारी छागे || करम के नोहय लेख बिधाता | ये कईसन बिपत्ति आगे || काखर पाप के दे सजा , दया थोरिक घलो नई लागे | मासूम लईका मनला मारे , अब ये कईसन दिन आगे || दाई ददा जी कलपत हावय , कहा मोर बेटा गवांगे | कईसन खेल खेले बिधाता , मोर कुल के दिया बुतागे || ||मयारू मोहन कुमार निषाद||