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Showing posts from September, 2019

नवदिन नवराती (घनाक्षरी छंद)

*नवदिन नवराती , बरे दिया संग बाती ।* *बघवा सवार होके , दाई हा बिराजे हे ।।* *नवदिन नवरूप , देय सबो हुम धुप ।* *शंख चक्र गदा दाई , हाथ तोर साजे हे ।।* *धरे तिरशूल भाला , पहिरे हे मुंडी  माला ।* *मन्दिर मा दाई तोर , मांदर हा बाजे हे ।।* *भगत खड़े दुवारी , लेके पान सुपारी ।* *कर पूरा आस दाई , दिन तोर आजे हे ।।* *आनी बानी रूप धरे , मनौती ला पूरा करे ।* *सेउक हे दाई सबो , जस तोर गात हे ।।* *मन मा हे लेके आस , आये दाई तोर पास ।* *गाके तोर महिमा ला , सेवा ला बजात हे ।।* *तही दाई महामाई , करबे सदा सहाई ।* *मन्दिर भगत तोरे , दाई रोज आत हे ।।* *लगत हे मेला भारी , आये देखे नर नारी ।* *दाई ओ दुवारी तोर , सबला ओ भात हे ।।*                    *©रचना®*     *मयारू मोहन कुमार निषाद*       *गाँव लमती भाटापारा* *मो . नं. 7999844633*

गुरु के चरन मा सरग जान ले (शक्ति छंद)

गुरु के चरण मा सरग जान ले । मिले हे इहाँ तँय बने मान ले । कहे गा गुरु बिन कहाँ ज्ञान हे । मिलय ना कहूँ जी बड़े खान हे।। गुरु के चरन मा सबे धाम हे । सबो ले बड़े तो गुरु नाम हे । बिना जी गुरु नइ गये पार हे । करे गुरु सेवा इहाँ सार हे ।। मिले हे अजादी तहूँ जानले । लड़े हवै पुरखा बने मानले ।। कहे सबो झन हे इही धाम हे । जपव जी हरि के एके नाम हे ।। हवै जगमा जाती कइ नाम के । कहै झन ग बाँटव बिना काम के ।। भले झन रहन हम सबो संग मा बने हन सबे हम उही रंग मा ।। कभू झन रहव तुम धरम बाँट के । खुशी ला मनालव अपन छाँट के । रहन सबो मिलके बने गाँव मा । मया हे बसे गा जिहा ठाँव मा ।। लड़व झन कभू तुम सबो जान के । करव भेद झन जी अलग मान के । दया अउ मया हर इहाँ सार हे । करे पुन बिना नइ गये पार हे ।। 

हमर छंद परिवार (दोहा छंद) गीत

हमर छंद परिवार के , कतका करव बखान । तन मन मा जीखर बसे , सेवा अउ सम्मान ।। गुरु निगम जी हे हमर , शीतल छाँव अपार । देवत सबला जी हवै , छंद ज्ञान उपहार ।। बगरत चारो ओर हे , उड़य छंद के शोर ।  मनला सबके भात हे , गाँव गली अउ खोर ।। छंद हवय बड़ साधना , सिखले चेत लगाय । भटकत रहिबे तँय सखा , खोज ज्ञान ना पाय ।। दोहा रोला सोरठा , आनी बानी छंद । बाँधव मात्रा मा बने , आही बड़ आनंद ।।

आगे बढ़ते रहे हम सदा प्यार में ................

आगे बढ़ते रहे हम , सदा राहो में । बीते रात और दिन , अब तेरी बाहो में ।। तेरे बिन जी ना पाउ , मैं और एक दिन । काटे ना अब कटे ये ,  राते तेरे बिन ।। मैंने इस जिंदगी को , तेरे नाम किया । हरपल में सनम , तेरा नाम लिया ।। रोज बहते है आँसू , तेरी यादो में । तड़पाते है मुझको , रूठी रातो में ।। तेरे बिन अब अकेले , ना रह पायेंगे । दर्दे दिल की जुदाई , ना सह पायेंगे ।। हमको ना कभी , यु सताना सनम । छोड़कर नही जाना , तुझे मेरी कसम ।। तुम अगर साथ हो , जीत जाएंगे हम । प्यार दिल में बसे , मिटे ये सारे गम ।। तुम मिले जो मुझे , है जीना आ गया । तेरे साथ हर खुशी , अब मुझे भा गया ।। साँसों में हो समाये , मजा आ रहा । संग तेरे सुखी रोटी , हमे भा रहा ।। साथ रहना सदा , हमसफर बनकर । आयेगा नव सवेरा , खिलेगा तनकर ।।

ना भटक यै राही ये मंजिल खुद तेरे पास है

बढ़ना है आगे और पाना है मंजिल । किनारो से करलो दरकार मेरे यारा ।। भटकते हुये ना मिला है किसी को । बना लो खुदी को सरकार मेरे यारा ।। कब तक है यूँ खाते रहोगे जी ठोकर । अब बैठो ना ऐसे तुम बेकार मेरे यारा ।। है पाया उसी ने सभी कुछ यहा पर । की जिसने खुदको बेकरार मेरे यारा ।। उठो अब है मौका पहचानो इसे तुम । बना लो खुद ही को संसार मेरे यारा ।। जो भाये ना मनको उसे अब मिटा ओ । जोड़ो मन से मन की सितार मेरे यारा ।। ना सोचो कभी भी बेमतलब की बाते । सब तुझमे है समाया ये सार मेरे यारा ।। ना रूक अब यहा पे आगे बढ़ते चले जा । ले खुद को इस भव से अब पार मेरे यारा ।। हार की बात मन से मिटाओ  सदा तुम । हो जगमे तुम्हारी जय जयकार मेरे यारा ।। ये जीवन पल भर की ना कर स्वाभिमान । बस ले इसको अपना है आधार मेरे यारा ।।              ||मयारू मोहन कुमार निषाद|

वंदना माँ शारदे ज्ञान वरदान दे (कवि सम्मेलन)

माता वीणापाणि मुझे ज्ञान वरदान दे । स्वर को तू मातु मेरे आज तू सवार दे । होना जाए भूल कहि भूल से भी मातु मेरे । ज्ञान मुझे तू माँ आज भण्डार दे ।। बालक है हम माँ तू है जगजननी । हर के अँधेरे हमे गया का प्रकाश दे ।। मंगलमय हो माता सब कारज । विघ्न को हर माँ आशीष आपार दे।। जाती धर्म भेदभाव , छोड़कर ये प्रभाव । आओ सभी मिलकर , गीत नइ गाइये । सुमत का हो जी डोर , फैले यही चहुँओर  । रूठे नही कोई अब , सबको मनाइये । आओ सभी ठाने यही , बात सभी माने यही । पुरखो की शान को जी , सदा ही बढ़ाइये । अपना है स्वाभिमान , इस पे हमे गुमान । आओ रक्षा करे अब , प्रण यही खाइये  ।।

शहीद - ये - आजम :- भगत सिंह जयंती पर्व

नमन करो उस वीर को , जिसने कसम सदा यह खाई है । भारत माँ की रक्षा में जिसने , अपनी भी प्राण गवाई है ।। हम किस देश के वासी है , यह बात उसने बतलाई थी हिन्द बसा अपने भी लहू में , क्रान्ति उसने ये लाई थी ।। जिनके बलबूते आज हमे , मिल पाई ये वही आजादी है । काँप उठा अंग्रेजी सिंहासन , और फांसी उन्हें सजादी है।। डरा नही ओ कभी भी देखो , अंग्रेजन की अवलादो से । बरसी गोली बम और बारूदे , ना तोप जैसे फौलादो से ।। सदा ही हँसता ओ पंजाबी , भारत माँ की जय बोल गया । हमे इंकलाब का नारा देकर , फांसी पर था ओ झूल गया ।। नमन करे उस वीर को , जिसने कसम सदा ये खाई है । भारत के कोने कोने में , जिसने यह जोत जलाई है ।।                                         रचना कॉपीराइट               ||मयारू मोहन कुमार निषाद||

करूँ मैं आराधना सदा माँ भारती की ................

*गाउँ मैं आराधना सदा माँ भारती की ।* *मात शारदे मुझे , ऐसी वरदान दे ।।* *हिन्दू को प्रणाम मुस्लिम को  सलाम करूँ ।* *सीमा में भी लड़ आउ ऐसी स्वाभिमान दे ।।* *गरब गुमान छोड़ , करूँ मैं आराधना ।* *माँ मेरी विपत हर , मुझको तू ज्ञान दे ।।* *परहित साधना हो , यही मेरी कामना है ।* *भेद भाव ना करूँ माँ , ऐसी मुझे आन दे ।।* *परहित मर जाऊ , दिन हिन को बचाउ ।* *अंतरात्मा को माँ , ऐसी मेरी जान दे ।।* *बैरियों से लड़ जाऊ , प्राण अपना गवाँउ ।* *अमर हो नाम मेरा , ऐसी मुझे शान दे ।।* *रहे सब जीव सुखी , कोई भी ना रहे दुखी ।* *लिखूँ सदा पीर माँ , बस ऐसी पहिचान दे ।।*          *रचना कॉपीराइट*     *मयारू मोहन कुमार निषाद*        *गाँव लमती भाटापारा (छ.ग.)*     *मो.नं. 7999844633*

वीरांगना दाई बिलासा (आल्हा छंद)

*वीरांगना दाई बिलासा ..............* *अरपा नदिया के तीरे मा , रिहिस हवय जी इक ठन गाँव ।* *दाई बिलासा जेला बसाय , पड़िस बिलासापुर हे नाँव ।1।* *दक्षिण कोशल राज रिहिस हे , राजा रहय कल्याण साय ।* *रतनपुर जेखर राजधानी , राजा सुग्घर राज चलाय ।2।* *इक झन केंवट रामा नाव के , डेरा  नदियाँ तिरा जमाय ।* *बसगे अपन लोग बाल संग , सुग्घर जिनगी अपन बिताय ।3।* *मारय मछली खेलय फांदा , जंगल मा जी करय शिकार ।* *बेटी जेखर रहिस बिलासा , चमकय ओखर जी तलवार ।4।* *देखे सुग्घर चिक्कन चादँन , रंग रूप के रिहिस खदान ।* *रामा केंवट के जी बेटी , चारो कोती पावय मान ।5।* *बंशी केंवट संग बिलासा , जोड़ी सबके मनला भाय ।* *चलय वीर जब दूनो संग म , देखय बैरी मन थरराय ।6।* *इक दिन राजा वीर साय जी , जंगल जावय करे शिकार ।* *संग सिपाही पाछू राहय , होंगे राजा ऊपर वार ।7।* *जंगल मा अब राजा इक झन , तड़पय मारे भूखे प्यास ।* *दाई बिलासा सुनके आवय , बनगे राजा के जी खास ।8।* *दाई बिलासा बंशी मिलके , रोजे सेवा खूब बजाय ।* *सेवा ले खुश होके राजा , संग अपन दूनो ला लाय ।9।* *देवय आसन राजा गढ़ मा , मान अबड़ जी सुग्घर पाय ।*