कवि सम्मेलन आगाज माँ शारदे वन्दना
वन्दना बैठे है विराजमान , कवि सभी है सुजान | मात शारदे से मांगू , ऐसी वरदान दे || हिन्दू को प्रणाम मुस्लिम को सलाम है मर मिटे देश पर ऐसे ही जवान दे || नेताओ ने नीति , और बदल रीत सारी | काट के तू रखदे , ऐसी ना जुबान दे || सताये जो माता पिता को निज रात दिन भगवान किसी को ना ऐसी सन्तान दे || हो रहा आगाज अब कवि सम्मेलन की , क्या सुनाएंगे कवि जरा विचार कीजिये | सुखा सुखा तन मन , और ये वातावरण इस पर तालियों वाली फुहार कीजिये || भूलकर गम सारे , अपने में हो मगन उजडे ना मौसम , को बहार कीजिये | अब के कवियों को , दिया है जो इतना प्यार ऐसे में मेरा प्रणाम भी स्वीकार कीजिये || माँ वीणा पाणि को नमन माता वीणापाणी मुझे ज्ञान वरदान दे | स्वर को मातु मेरी आज तू सवाँर दे || होना जाये भूल कहि , भूल से भी माता मेरी ज्ञान का मुझे तू , आज भंडार दे|| बालक है हम माँ , तू है जगजननी हर के अँधेरे हमे , ज्ञान का प्रकाश दे | हो मंगलमय माता सब कारज , विघ्न को हर माँ आशीष आपार दे || सभी को है माता एक तेरा ही सहारा , हमको भी माँ तेरी चरणों में प्यार दे ||