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Showing posts from May, 2018

बेटी बेटा ला दव मान बरवै छंद

बरवै छंद बेटी बेटा हावय , एक समान । कर ही मिलके सेवा , तँय हर जान ।। दे अधिकार बरोबर , होहय नाम । संग रही जीयत ले , आहय काम ।। बेटी जस बगराही , जगमा तोर । बेटी बनके लक्ष्मी , करही शोर ।। बेटी बिन सुन्ना हे , ये संसार । बेटी बेटा जिनगी , के आधार ।। भेद भाव झन करबे , तैंहर आज । बेटा बनके बेटी , करही राज ।। ||मयारू मोहन कुमार निषाद||

महतारी के मया कुंडलिया छंद

*आज 13 मई महतारी दिवस विशेष  (कुंडलिया छंद*) •••••••••••• महतारी के हे मया , सबले बड़का जान । जनम देय सबला हवै , मानव अउ भगवान ।। मानव अउ भगवान , सबो कोरा मा आये । जिनगी अपन बिताय , मया ला रोजे पाये । येखर रूप हजार , आय लक्ष्मी अवतारी । सुख दुख बाँटय संग , भार बोहे महतारी ।।           *रचना कॉपीराइट*   || *मयारू मोहन कुमार निषाद*||       *गाँव लमती भाटापारा*

बैरी लाहो झनले आल्हा छंद

आल्हा छंद श्री मोहन कुमार निषाद बैरी लाहो झनले हमर मितानी देखत बैरी , हमला झन समझव कमजोर । भारत माँ के बेटा अन हम , निछ देबो खर्री ला तोर । हितवा मनके संगी हन हम , बैरी मनबर सउहत काल । जादा लाहो झन लेबे तँय , वीर हवन हम माँ के लाल । आघू आघू ले तँय बैरी , फोकट मा रे झन फुफकार । जाग जही जब हमर देश हर , देही तोला तुरते मार ।। डरके मारे काँपत काँपत , रोवत रहिथे तोर जवान । आन मान बर हम लड़ जाथन , सीमा मा सीना ला तान ।। कतको तोला हन समझाये , समझ तोर नइ आवय बात । भूत असन हावस तँय हर रे , पड़ही कोर्रा जूता लात ।। फेर कहूँ तँय आबे बैरी , नइ बाचय अब तोर परान । परन करे हँन हम सब मिलके , सदा करत रहिबो गुणगान ।।           रचनाकार  मोहन कुमार निषाद    लमती भाटापारा छत्तीसगढ़

रुखराइ झन काटव चौपई छंद

रुखराइ ला झन तँय काट , इखरो दुख संगे मा बाँट । अपने जीव असन तँय जान , बेटा कस येमन ला मान ।। हावय जिनगी के आधार , पेड़  छाँव देथे आपार । लकड़ी येखर आथे काम , जानव सब झन येखर दाम ।। बनथे येखर जी सामान , नइ हावव कोनो अनजान । महता येखर जानव आज , जगमा होही तुंहर राज ।। फुलथे फरथे जी भरपूर , करय बिमारी कतको दूर । आवय दवई बर ये काम , हावय जेखर कतको नाम ।। रुखराइ ला तैहर लगा , भाग सबो के तँय गा जगा हरियाली होही सब ओर ,  जगमा होहय तोरो शोर ।। पेड़ काटना करदव बंद , कहिथे मोहन सुग्घर छंद । रुखराइ हावय अनमोल , कहय  तराजू  मा झन तोल ।। मिलके पेड़ लगावव आज , बनही सबके बिगड़े काज । मनही खुशहाली सब ओर , महकय अँगना चारो खोर ।।              ||मयारू मोहन कुमार निषाद||                  गाँव लमती भाटापारा