तोर सुरता मा छत्तीसगढ़ी गजल
तोर सुरता मा नींद बैरी आवय नही । का करव मैं कुछू मोला भावय नही ।। तोर चेहरा मोर आंखी मा झुलत रहिथे । अन्न पानी मोला काही अब सुहावय नही ।। रात - दिन तोर सपना अब सताथे मोला । का बतावव तोर सुरता हर जावय नही ।। मन हा बइहा असन मोर गुनत रहिथे । तोर छोड़ गीत काही अब गावय नही ।। मया मा मन ला मोर कइसे मोही डारे । बोली कखरो अब मोला सहावय नही ।। ©||मयारू मोहन कुमार निषाद||®