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Showing posts from October, 2019

हिन्दी रोला छंद

रिश्तों की पावन डोर (रोला छंद ) .............. करो नही अभिमान , यहा सब मिटटी भाई । जर जमीन के नाम , करो ना कभी लड़ाई । आपस में मतभेद , सदा घातक है हुआ । जीवन के दिन चार , नही है कोई जुआ ।। रिश्ते है अनमोल , कद्र जी इनकी करलो । ना समझो कमजोर , बात हृदय में धरलो । मानो सबको एक , तभी तो मान मिलेगा । सुखमय हो परिवार , चेहरा सदा खिलेगा ।।            ||मयारू मोहन कुमार निषाद||

छप्पय छंद : - मोहन कुमार निषाद

                  समय हे बलवान समय हवय बलवान , भेद जी येखर जानव । होवव झन ग उदास , फेर ला अब पहिचानव । कीमत येखर जान , बने जी रस्ता धरले । बनही सब गा काज , परन अब मनमा करले । कइसे होही हार जी , राख अटल विश्वास ला । मिलबे करही जीत हर , मनमा रखबे आस ला ।।             बाँधव कफन मुड़ मा                 धड़ धड़ ले दव दाग,सबो ला मारव गोली। छाती मा चढ़ जाव,खून के खेलव होली। आतंकी ला गाड़,देश बिक्कट सुख पाही। छोंड़व झन जी आज,फेर मउका नइ आही। मानवता के फूल बर,सबो बोझ ला खाँध लव। आवव आघू वीर तुम, कफन मूड़ मा बाँध लव।                शिक्षा के जोत शिक्षा हे अनमोल , जतन जी येखर करले । पाये मौका आज ,  ध्यान ला थोरिक धरले । बनके तँय गुणवान , बने सम्मान ल पाबे । जगमा होवय नाम , कमा के जस बगराबे । शिक्षा हावय सार गा , सब येला बगराव जी पावय सब झन मान ला , जोत अइसन जलाव जी ।।              बेटी ला दव मान बेटी ला दव मान , तभे जी बेटी बढ़ही । देवव मया दुलार , बने जी बेटी पढ़ही । करही जगत उजास , तोर जी नाम जगाही । लाही नवा बिहान , बराबर माने पाही । बेटी शिक्षा आज जी , बनगे हावय सार गा । म

अमृतध्वनि छंद

होवय झन अब हार जी , करत रहव प्रयास । मिलबे करही जीत हर , राख अटल विश्वास ।। राख अटल विश्वास , धीर जी मनमा धरले । बनबे झन कमजोर , परन जी अइसन करले ।। बैरी तोला , देख रोज जी , दुख मा रोवय । मान कभू झन हार , नाम जी जग मा होवय ।। करले तँय हर दान जी , करनी बने सुधार । होवय जग मा नाम हा , जिनगी अपन सवाँर ।। जिनगी अपन सवाँर जग म जी , जस बगराबे । मानवता ला , जान सुमत के , जोत जलाबे ।। मानव हन सब , एक सत्य के ,  रस्ता धरले । होबे जी भव , पार करम ला , अइसन करले ।। छोड़व दारू के नशा , नाश करै परिवार । कतको झन जी रोय हे , बात हवय ये सार । बात हवय ये , सार दारु ला , झन जी पीबे । बात कहत हँव , मान संग मा , जिनगी जीबे । रद्दा अइसन , धरके अब झन , घर ला तोड़व । लावव घर मा , सुख शान्ति गा , दारू छोड़व ।।

बहू बेटी ला मानव कुंडलिया छंद

मानव  बेटी  ला  बने ,  देके  मया  दुलार । करव भेद झन आज तुम ,जिनगी के दिन चार ।। जिनगी  के  दिन  चार , मान  बेटी  ला  देवव । मारव झन जी कोख , परन अब सब गा लेवव ।। होथे  लक्ष्मी  रूप , मरम  ला  येखर जानव । बहु बेटी ला आज , रतन जी धन कस मानव ।।       मयारू मोहन कुमार निषाद

हमर पर्यावरण कुंडलिया छंद

रोवत हे पर्यावरण , परदूषण मा आज । बाढ़त हावय रोज के , गिरही जइसे गाज ।। गिरही जइसे गाज , हवय परदूषण भारी । गाडी घोड़ा आज , बने सबके लाचारी ।। संकट मा ओजोन , परत हे छेदा होवत । कटगे जम्मो पेड़ , देख के सब हे रोवत ।।

मानव एक बरोबर कुंडलिया छंद

जागे सबके भाग जी , नवा राज मा आज । बनगे हावय अब हमर , छत्तीसगढ़  जी राज ।। छत्तीसगढ़ जी राज , मान होवत हे भारी । होवत हावय आज , काज जम्मो सरकारी ।। हमर नवा पहिचान , सबो के मनला भागे । आगे नवा बिहान , भाग जी सबके जागे ।। करबे झन तँय भेद जी , एक सबो ला मान । मानव गा सब एक हन , मानवता ला जान ।। मानवता ला जान , करव जी सबके सेवा । देखत हे भगवान , करम के देहय मेवा ।। बात कहत हँव सार , सबो के दुखला हरबे । होवय जगमा नाम , करम जी अइसन करबे ।।

देवउठनी पूजा कुंडलिया छंद

आवय हमर तिहार जी , करलव पूजा पाठ । तुलसी सालिग्राम के , परत हवय जी गाँठ ।। परत हवय जी गाँठ , होय गन्ना के पूजा । कतको हवय उपास , देव जी नइये दूजा ।। हमर संस्कृति आय , सबो के मनला भावय । लेके नवा बिहान , देव उठनी जी आवय ।।

सेवा करले कुंडलिया छंद

होवत हावय आज जी , देखव अत्याचार । नेता मनके राज मा , चलत हवय सरकार ।। चलत हवय सरकार , सबो  मनमानी करथे । लूटत हावय रोज , जेब जी अपने भरथे ।। देखत जनता आज , सबो जी दुख मा रोवत । नेता कइसन पाय , देख जी का हे होवत ।। करले सेवा जी बने , जिनगी अपन  सँवार । बात कहत हव मानले , सेवा हावय सार ।। सेवा हावय सार , भेद जी झन तय करबे । एक सबे ला मान , सबो के दुखला हरबे ।। मिलही जी भगवान , सत्य के रस्ता धरले । होबे भवले पार , करम जी अइसन करले ।।

सुवा नाचा कुंडलिया छंद

हावय नाचत जी सुवा , नोनी मन सब आज । देखत हे मिलके सबो , छोड़ अपन सब काज ।। छोड़ अपन सब काज , गीत जी मनला भावय । देख सुवा के नाच , सबो के मन हरसावय ।। हमर धरोहर आय , साल मा जी ये आवय ! हमर संस्कृति देख , सुवा जी नाचा हावय !!

मानव झन हार कुंडलिया छंद

मानव झन तुम हार जी , करत रहव परयास । मनमा धीरज ला धरे , राख अटल विश्वास ।। राख अटल विश्वास , जीत जी मिलबे करही । मनके हारे हार , पार ग कइसे उतरही ।। मिहनत हावय सार , बात जी येला जानव । हावय कतको नाम , कहत हव येला मानव ।।

नारी शक्ति कुंडलिया छंद

नारी शक्ति रूप ये , झन समझव कमजोर । महिमा जेखर हे कहे , देवन मन चँहु ओर ।। देवन मन चँहु ओर , सार जी येला मानव । कर लेवव पहिचान , रूप ला येखर जानव ।। सुख दुख मा हे संग , आय जी ये अवतारी । बोहे जग के भार , सबल हावय जी नारी ।।          ||मयारू मोहन कुमार निषाद||

रोला छंद

मानुष जोनी पाय , अपन जी भाग जगाले | करले सुग्घर काम , राम के नाम लगाले || सेवा जिनगी सार , सबो के सेवा करले | एक सबो ला मान , बिपत जी सबके हरले ||

तिहार दोहा छंद

आगे हवय तिहार जी , दिया बने ले बार | घर अंगना सजा बने , करले जी उजियार || आगे हवय तिहार जी , दीया बने ले बार | घर अंगना सजा बने , करले जी उजियार || आगे हवय तिहार जी , दीया ला ले बार | घर अंगना सजा बने , करले जी उजियार ||

खेती कुंडलिया छंद

खेती समझव घर अपन, सब किस्मत के लेख । लहराही गा धान कस, बनके खातू देख ।। बनके खातू देख, सुघर खेती हरियाही । दुख पीरा हा तोर, सबो तुरते मिट जाही ।। बंजर भुइँया आज, बदल गे हमरो सेती । झन जा गाँव ल छोड़, नियत ले करले खेती ।। खेती ला जी कर बने , सुग्घर होही धान | खातू ला गा डारले , कहना मोरो मान | कहना मोरो मान , धान ला सुग्घर पाबे | नइ होवय नुकसान  , बाद मा नइ पछताबे | बात हवय जी सार , कहत हँव येखर सेती | आगे अब विज्ञान , करव जी सुग्घर खेती ||

नारी शक्ति

त्याग समर्पण सेवाभावना , नारी का सिंगार है बहता प्रेम का वत्सल धारा , ममता बना आपार है ।। देवतुल्य सदा पूज्यनीय   , ये सभी गुणों की खान है । सबको देती शीतल छाया , नही कोई इससे महान है  ।। हँसकर है सब सह लेती माँ , होती ना कभी उदास है । अपने गम को सदा भूल के , देती माँ सदा उजास है ।। ममतामयी नारी शक्ति यह , बहती  बनकर धार है । अपने में सब लिये समा , माँ महिमा तेरी आपार है ।। कर्ज तेरी माँ चुका ना पाये ,  मानुष और भगवान भी ।

माँ शारदे संस्कृत वन्दना

नमन मातु श्री शारदे , तव चरण कमल माँ वन्दना ! पूजित सर्व देवोनाम्  ,  वन्दित माँ सर्वे  जनः !! श्वेतकमलाशन संस्थाम् , हस्ते वीणा पायणी ! सिर कृट तिलक  साजै  , श्वेत वस्त्र धारिणी !! हस्ते स्फटिक मालिकम् , विराजे हंस  स्वारिणी ! वंदन हे मातु श्री शारदे  , जय माँ विणा पायणि ।। भयदाम अन्धकारः हन्ति , ज्ञान  पुंज  प्रकाशिनी ! देव दनुज वन्दित सदा , अमित  वर गुणदायिनी !! भक्तवत्सल मातु शारदे , हे माँ वीणा पायणी ! याचक करत है वन्दना , मातु कष्ट निवारिणी !! नमन मातु श्री शारदे , तव चरण कमल माँ वन्दना ! अर्पित तन मन जीवनम्  , सार्थक  सर्वथा  साधना !!      ||मयारू मोहन कुमार निषाद||