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Showing posts from August, 2018

स्वागत वन्दना (हिंदी कुंडलिया छंद)

स्वागत वंदन आपका , करते है करजोर । चले कलम अब आपकी , साँझ सबेरे भोर ।। साँझ सबेरे भोर , लेखनी धार बहाये । लिखे जगत की पीर , सभी के मन को भाये ।। होना ना कमजोर , रोज सुख दुख है भागत । रहो सदा मजबूत , करे अब मोहन स्वागत ।।        ||मयारू मोहन कुमार निषाद||

माँ शारदे वंदना (कुंडलिया छंद)

वंदन माता शारदे , करव सुमरनी तोर । दे हमला वरदान माँ , अरजी हावय मोर ।। अरजी हावय मोर , छंद ला हम सब गावन । आके देबे ज्ञान , तोर माँ लइका हावन । तोर चरन के धूल , हमर माथा के चंदन । करत हवन गोहार , चरन मा गाके वंदन ।।                  रचना कॉपीराइट         ||मयारू मोहन कुमार निषाद||                 लमती भाटापारा

बेटी के सुरक्छा (घनाक्षरी छंद)

बेटी ला जी मान मिले , चेहरा उखर खिले । आवव सबो मिलके , बेटी ला बचाव जी । बेटी बिन जग सुन्ना , गोठ सबो होंगे जुन्ना । बेटी ला बचाके अब , नवा जुग लाव जी । बेटी लछमी कहाँथे , तभे जी ओ मान पाथे । मान देके बेटी ला गा , मान खुद पाव जी । बेटी हा बने पढ़ही , रद्दा नवा ओ गढ़ही । बेटी ला बचाबो सब , किरिया ला खाव जी ।।                    रचना कॉपीराइट          ||मयारू मोहन कुमार निषाद||               गाँव लमती भाटापारा

किसान के पीरा (घनाक्षरी छंद )

बदली हा छावत हे , पानी नइ आवत हे । देखत किसान मन , बड़ पछताय जी । करत सबो बियासी , थोड़ा रोय थोड़ा हासी । जोहत हे रद्धा रोज , थक हार आय जी ।। काही नइ भावत हे , सनसो हा खावत हे । करे का बिधाता जेन , फल ऐसे पाय जी । करत हे सबो सेवा , तभो नइ पाय मेवा । जुरमिल के गा रोज , गुन तोर गाय जी ।।                रचना कॉपीराइट       ||मयारू मोहन कुमार निषाद||            गाँव लमती भाटापारा