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Showing posts from July, 2018

गुरु वंदना कुंडलिया छंद

वंदन गुरू चरन करव , लगा चरन मा ध्यान । रद्धा सत के मैं धरव , गुरू मोर भगवान ।। गुरू मोर भगवान , गुरुवर के जस गाले । देय गुरू हे ज्ञान , जान के दरशन पाले ।। गुरू ज्ञान के खान , लगा ले माथा चंदन । मिलय नहीं हर बार , गुरू के करलव वंदन ।।        ||मयारू मोहन कुमार निषाद||             गाँव लमती भाटापारा

उठा लू कलम - दोहे ..........

*उठा कलम मोहन चला , लिखने जग की पीर* । *मानवता को जोड़ने , धरुँ नहीं अब धीर* ।1। *सदा कलम चलती रहे , करूँ नही आराम* । *करूँ जगत कल्याण मैं , करते परहित काम* ।2। *मानवता को जानले , जन वह बने महान* । *पीड़ा सबकी एक है , एक सभी को मान* ।3। *भेद भाव को छोड़कर , बाँध एकता सूत* । *मानव मानव जोड़ कर , बनें शान्ति का दूत* ।4। *जाती सबकी एक है , यही जगत का सार* । *चलना सबको साथ है , तब होगा उद्धार* ।5। *जात पात के नाम पर , लड़ना है बेकार* । *रहें प्यार से हम सभी , होंगे भव से पार* ।6। *गा लो जग की पीर को , सबको गले लगाय* । *भारत अपना देश है , सबके मन को भाय* ।7।             रचना कॉपीराइट      मयारू मोहन कुमार निषाद         गाँव लमती भाटापारा

मोर छत्तीसगढ़ महतारी

पावन भुईया महतारी के अउ सूत उठ करव परनाम जेखर मया के छइंहा मा जिहा बसे हावय मोर गाँव ।। डोगरी पहाड़ी रुख राई ले सजे हावय दरबार अउ आमा अमली बर पिपर के जिहा हावय सुघ्घर छाँव ।। गांवे मा सहाडा देव बिराजे अउ बईठे हावय महामाया दाई अउ ठाकुर देव ला करव पैलगी शीतला दाई ला माथ नवाई ।। माटी के घर मा माटी के खपरा छानही परवा छवाय हावय अउ गऊ माता के गोबर मा सुघ्घर घरअंगना लिपाय हावय ।। की होत बिहनिया गाँव बस्ती मा चिरई चिरगुन के बसेरा हे चिंव चाव नरियाके बताथे आगे नवा सबेरा हे ।। की हाका पारत गाँव बस्ती मा राउत भईया आवत हे गऊ माता के बछरू पिला हर देखत रस्ता निहारत हे ।। धरके नागर बइला तुत्तारि किसाने हा  खेत मा जाथे अउ मेहनत के परताप ले भईया माटी के सेवा बजावत हे ।। माटी हमर महतारी ये भईया करम किसानी मितानी ये मीठ जुबानी लोटा भर पानी इही हमर मेहमानी ये ।।            रचना कॉपीराइट 🌷मयारू मोहन कुमार निषाद🌷      गाँव लमती भाटापारा ||

कुंडलिया छंद

कुंडलिया छंद - मोहन कुमार निषाद जिनगी के आशा आसा जादा झन करव , जिनगी के दिन चार । भाग दउड़ जी हे लगे , थकना हे बेकार । थकना हे बेकार , रोज आघू हे बढ़ना । नइ होवन कमजोर , नवा रद्दा हे गढ़ना । मनले झन जी हार , जान ले हे परिभासा । रही बने खुशहाल , इही जिनगी के आसा ।। मानव झन हार होवय झन अब हार जी , करत रहव परयास । मिलबे करही जीत हर , राख अटल विश्वास । राख अटल विश्वास , धीर जी मनमा धरले । होबे झन कमजोर , परन जी अइसन करले । बैरी तोला देख , रोज जी दुख मा रोवय । मान कभू झन हार , नाम जी जग मा होवय ।। सेवा जिनगी सार करले सेवा जी बने , जिनगी अपन सँवार । बात कहत हँव मानले , सेवा हावय सार । सेवा हावय सार , भेद जी झन तँय करबे । एक सबे ला मान , सबो के दुख ला हरबे । मिलही जी भगवान , सत्य के रद्धा धरले । होबे भवले पार , करम जी अइसन करले ।। खेती खेती ला जी कर बने , सुग्घर होही धान । गोबर खातू डार ले , कहना मोरो मान । कहना मोरो मान , धान ला सुग्घर पाबे । नइ होवय नुकसान , बाद मा नइ पछताबे । बात हवय जी सार , कहत हँव येखर सेती । आगे हे विज्ञान , करव जी सुग्घर खेती ।। नारी शक्ति न