छोड़ संसो हे जीना (कुण्डलियाँ छंद)

छोड़ संसो हे जीना (कुण्डलियाँ छंद)

जीना सीखव आज मा , छोड़ काल के बात ।
आहय जिनगी मा मजा , कटय बने दिन रात ।।
कटय बने दिन रात ,  गोठ ला जी तँय सुनले ।
बात हवय ये  सार  ,  मने मा  थोरिक  गुनले ।।
जिनगी मा जी रोज , इहाँ सुख दुख हे पीना ।
कहिथे सुनव सियान ,  छोड़ संसो हे जीना ।।

         मयारू मोहन कुमार निषाद
           गाँव - लमती , भाटापारा ,
      जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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